आजादी का अमृत महोत्सव के अन्तर्गत आयोजित निबंध प्रतियोगि …

– कु. शीतल
पुत्री श्री रामनिवास
बी .ए. प्रथम वर्ष

‘‘तू भारत का गौरव का है, तू जननी सेवारत है।
सच मुझसे कोई पूछे तो, तू ही तू भारत है।।’’

प्रस्तावना

भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का भारत के इतिहास में बहुत महत्व है। सम्पूर्ण भारत के लोगों के भारत को अंग्रेजी की गुलामी से आजा दी दिला ने के लिए बहुत संघर्ष किया है। आजादी के लिए हमारे महान स्वतन्त्रता सैनानियों ने अपने जीवन की चिन्ता किए बिना , हँसते हुए, अपने प्राणों की आहुति दे दी । अगर उस समय देशवासियों ने अंग्रेजों के खिलाफ आवाज नहीं उठाई हो ती , तो -शायद आज भी भारत देश अंग्रेजों की गुलामी कर रहा होता ।

भारत में अंग्रेजों का आगमन

प्रारम्भ में व्यवसाय करने के उद्देश्य से अंग्रेज भारत आये। वर्ष 1600 में अंग्रेज भारत में आये है। चाय, जूट और रेशम तथा कपास के व्यापार की आड़ में उन्होंने भारत में अरा जकता फैला ना शुरू कर दिया । तथा धीरे-धीरे देश को अपना गुलाम बना लिया । भारत में शासन करने के लिए अंग्रेजों ने एक नीति अपना ई- ‘‘फूट डालो राज्य करो ’’ और अंग्रेजों ने पूरे भारत का शासन अपने हाथों में ले लिया तथा भारतीयों को सता ना शुरू कर दिया । इससे तंग आकर भारत में आजा दी की माँग उठने लगी ।

1857 की क्रान्ति

अंग्रेजों की तानाशाही से तंग आकर भारत के लोगों ने ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का फैसला लिया और भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम का पहला संघर्ष भारतीय सैनिक वीर मंगल पाण्डे द्वारा किया गया । यह संघर्ष अंग्रेजों के खिलाफ एक महान घटना थी । यह संघर्ष आकस्मिक नहीं था । बल्कि पूरी शताब्दी के असंतोष का परिणाम था । भारतीय सैनिकों के विद्रोह से उठा यह संघर्ष धीरे-धीरे पूरे भारत में फैल गया । यह संघर्ष ब्रिटिश शासन के लिए बड़ी चुनौती थी । सैनिकों , आम नागरिकों के अलावा देश की बड़ी रियासतों ने भी इस संघर्ष में योगदान दिया । झाँ सी की रानी महारानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के खिलाफ एक शानदार युद्ध लड़ा तथा अपनी सेना का नेतृत्व किया ।

‘‘वो झाँसी की रानी , नहीं हार मानी ,
गयी टेक घुटने और मर गयी वतन पर।
वो थी दुर्गा सी रानी , जा ने अपने मन में ठानी
सीना पर मरे, मरते दम तक लड़े।।’’
1 साल के भीतर ही ब्रिटिश शासन ने इस क्रान्ति को रोक दिया हिन्दू, मुश्लिम, सिक्ख आदि भारत के बहादुर बेटों ने इस संघर्ष में अपना योगदा न दिया । यह क्रान्ति 10 मई 1857 को मेरठ के छावनी में शुरू हुई तथा 20 जून 1858 को ग्वालियर में समाप्त हुई।

1857-1947 के बीच का संघर्ष

1857 की क्रान्ति से अंग्रेजी शासन के कदम लड़खड़ा ने लगे। लगातार एक के बाद एक आन्दोलनों ने ब्रिटिश शासन हिला कर रख दिया , भा रतीय स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत से ऐसे आन्दोलन हुए, जिन्होंने भारत को स्वतन्त्रता दिला ने में महत्वपूर्ण भूमि का निभाई।

असहयोग आन्दोलन

असहयोग आन्दोलन नमक पर ब्रिटिश एकाधिकार के खिलाफ सन् 1930 में यह आन्दोलन गाँधी जी के नितृत्व में किया गया था । यह गाँधी के प्रसिद्ध दाड़ी मार्ग में हुआ था । इसी बीच अंग्रेजोें ने भगत सिंह को मात्र 23 साल की उम्र में फाँसी दे दी । लाला लाजपतराय की मृत्यु ने उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया । अधिकार जॉन सैंडर्स की हत्या करके मगंल सिंह ने इसका बदला लिया । उन पर लाहौर षडयन्त्र का मुकदमा भी चला या गया । 23 मा र्च 1931 को राजगुरू, और सुखदेव के साथ मंगल सिंह को भी फाँसी दे दी गयी ।

भारत छोड़ो आन्दोलन

सन् 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन भी चला या गया । हालांकि इसका उतना फल नहीं मिला । लेकिन इसमे भारत के लोगों को एक आशा की किरण दिखाई दी । जबकि यह संघर्ष उतना सफल नहीं था । सुभाष चन्द्र बोस, लाल बहादुर शास्त्री , जवाहरलाल नेहरू, भगत सिंह, मंगल पा ण्डे आदि स्वतन्त्रता सेनानियों ने इस संघर्ष में बहुत संघर्ष किया । अन्त में ब्रिटिश शासन ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये और भारत छोड़ने के लिए तैयार हो गये। 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतन्त्र हो गया । इसमें कई महापुरूषो ने अपने जीवन का बलिदान दिया था ।‘‘आँख में देखकर आँसू नील अम्बर में खो गये आघा त सहकर दुश्मन का नींद में सो गये।’’

निष्कर्ष

भारत को स्वतन्त्रता दिला ने में हमारे कई महापुरूषों ने अपने जीवन त्याग किया है। इसमें कई महत्वपूर्ण घटना ऐं हुई- जलियाँ वाला बाग हत्या कांड, सा इमन कमीशन आदि । अपने देश को स्वतंन्त्रता बहुत मुश्किल तथा संघर्षों से मिली है। हमें इस बात ध्यान में रखते हुए कार्य करना चा हि ए।

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pratibha

combined e-magazine for session 2019-20, 2020-21, 2021-22 published by Mata Bhagwati Devi Rajkiya Mahila Mahavidyalay

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