– कु. प्रीती बाला सागर
पुत्री श्री बनी सिं ह
बी .ए. तृतीय वर्ष
प्रस्तावनाः
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में हमारे वीर शहीदों का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। आज हम जो आजादी की साँसे लेते है। वह हमारे क्रान्ति वीरों की हिम्मत का नतीजा है। भारत में अंग्रेजों का आगमनः – भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की शुरूआत कहाँ और कैसे हुये थी , इससे पहले हम जा नते हैं कि भारत अंग्रेज आये क्यों थे? सन 1600 ई0 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी भारत में व्यापार के लिये आयी और भारत देश के स्वतन्त्रता संग्रा म की गाथा प्रारम्भ होती है।
1857 का स्वतन्त्रता संग्राम:
भारत में लगातार अंग्रेजों की हुकूमत चल रही थी । ब्रिटिश सरकार लगातार भारतीय जनता पर जुल्म ढा रही थी । कभी हड़पनीति तो कभी अन्य कारकों से भारतीय जनता पर दबा व बना रही थी यह सिर्फ ना केवल भारतीयों ने महसूस किया अपितु ब्रिटिश सता धीरों ने भी महसूस कि या इस -लिये इस गलती को सुधारने के लिये सन् 1973 में रेग्युलेटिंग एक्ट और पिट्स एक्ट और सन् 1813, 1853, 1873, में चार्टर एक्ट पारित किया गया परन्तु अंग्रेज सत्ता की भूख मे अपनी गलती पर पर्दा डालते जा रहे ये भारत में सर्व प्रथम स्वतन्त्रता की चिंगारी सन् 1857 में मंगल पा ण्डे द्वारा की गयी इसका प्रमुख कारण यह था कि अंग्रेज सेना में प्रयोग होने वाली बन्दूकों , राइफलों में चर्बी के कारतूस का प्रयोग किया जा रहा था इसकी भनक भारतीयों के कानों में पड़ी थी । एक बार मंगल पाण्डे को वह कारतूस मूँह से खोलने के लिये कहा गया तो मंगल पाण्डे ने उसे खोलने से साफ इनकार कर दिया तो अंग्रेजी सेना ने उनके कपड़े उतरवा दिये तथा ह्यूमस नाम के अंग्रेजी सेनिक से उनकी बन्दूक लेने का आदेश दिया परन्तु मंगल पाण्डे ने उन पर हमला कर दिया और उसकी मौत हो गयी । इसलिये सन् 1857 को मंगल पाण्डे को फाँसी की सजा दी गयी । परन्तु यह विद्रोह एक वर्ष तक चला परन्तु बिट्रिश सरकार ने इस थमा दिया ।
बंगाल विभाजनः
बंगाल विभाजन 1904 में लॉर्ड कर्जन द्वारा किया गया था । इसका प्रमुख लक्ष्य अंग्रेजों का यह था कि वह हिन्दू और मुस्लिम में मतभेद पैदा करना चाहते थे किन्तु बाद में यह उनकी कमजोरी थी ।
जलियाँवाला बाग का हत्याकाण्डः
भारत में चारों तरफ जन आन्दोलन चल रहे थे। इधर अमृतसर में आन्दोलन सरगर्मी पर था । अमृतसर के डिप्टी कमीशनर ने प्रमुख नेता सत्य प्रकाश, और कि चलु को निष्कासन और नजर बन्द किया था । इससे जनता में भीषण आक्रोश पैदा हुआ और वह सभी शान्ति -पूर्वक वैसाखी के दिन प्रर्दशन करने के लिये 20000 लोग एकत्रित हुये परन्तु एक अंग्रेजों से भरी गाड़ी आई और जनरल डायर के आदेश पर मासूम जनता पर 1500 गोलियो की बौछार कर दी । बाद में जब इस मामले की जाँच पडताल की गई तो मामले को लीपा -पोती करके दिखाया । इसके लि ये जनरल डायर को साम्राज्य शेर की उपाधि से सम्बोधित किया गया परन्तु यह सब देखकर रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘सर’ का खिताब लौटा दिया और यह भारतीय इतिहास के स्वतन्त्रता संग्राम की एक प्रमुख घटना थी । यह घटना 8 अप्रैल 1919 ई0 में अम्रतसर में हुई ।
असेम्बली में बमबारीः
भेदभाव पूर्ण शासन और निरंकुश शासन को खत्म करने के लिये न केवल अंहिसा को अपना या बल्कि कुछ ऐसे क्रान्तिकारी थे जो मानते थे कि भारत को स्वतन्त्रता केवल हिंसा के माध्यम से ही दिला ई जा सकती है। जिनमें बाल, लाल, पाल प्रमुख थे और प्रमुख क्रान्तिवीर भगत सिं ह, सुख देव, राजगुरू थे भारत में इनका नाम स्वतन्त्रता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमि का है। यह एक ऐसे वीर थे। जिनकी साँसों में भारत माता को आजादी दिला ने का जज्बा था । सन् 1929 में भगत सिंह और बटुकश्वर दत्त ने आपस में मिलकर दिल्ली असम्बेली में बम फेंका था और इसके लि ये उन पर मुकद्दमा भी चला था और सन् 1931 23 मार्च को भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव को फाँसी दे दी गयी । इस घटना के बाद स्वतन्त्रता संग्रा म बढ़ता जा रहा था ।
खिलाफत आन्दोलनः
स्वतन्त्रता संग्राम में न केवल हिन्दू उतरे बल्कि मुस्लिम भी उतरे ये खिलाफत आन्दोलन हिन्दू और मुस्लिम के भाई चारे का प्रमुख उदा 0 खिला फत आन्दोलन में ब्रिटिश उपनिवेश वादियो का एकजुट हो कर बहिष्कार किया गया था । यह आन्दोलन सन 1915 से 1922 तक चला ।
भारत में गाँधी का आगमनः
सन् 1915 में गाँधी जी दक्षिणी अफ्रीका से अपनी वका व्यवसाय छोडकर भारत आये जब गाँधी भारत आये तेा उनका नाम सिर्फ गाँधी के नाम से जानते थे परन्तु भारत को स्वतन्त्रता दिलाने में अंहिसा वाद को अपना या था । उन्होंने कई आन्दोलन किये और भारत को स्वतन्त्रता दिला ने में इनकी महत्व भूमि का थी । इनके प्रमुख आन्दोलन सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 भारत छोड़ो आन्दोलन और असहयोग आन्दोलन प्रमुख थे बाद में इन्हें राष्ट्रपिता की पदवी से सम्बोधित किया जा ने लगा
गुमनामः
भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में ऐसे जो नाम है जो ज्यादा तर गुमना म रहे है।
भीकाणकामाः
यह एक ऐसी स्वतन्त्रता सेना नी थी जि न्हों ने सन् 1857 की क्रान्ति में महत्वपूर्ण भूमि का निभाई थी । यह प्रथम भारतीय महिला थी जिन्होंने जर्मनी में शो शलिस्ट कान्फ्रेस में भारत का झण्डा लहरा या था ।
कमला देवी चट्टोपाध्याय :
यह भी एक ऐसी स्वतन्त्रता सेना नी थी जिन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया गया । कमला देवी चट्टोपाध्य का 14 क्रान्तिकारियों के साथ फाँसी दे दी गई।
हाजराः
यह एक ऐसी स्वतन्त्रता सेना नी थी जिन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया था ‘ इस दौरान इनके पैर में सिपाहियों ने गोली चला दी परन्तु इन्हों ने अपने हाथों से भारतीय झण्डे को नहीं गिरने दिया ।
उपसंहारः
कुछ इस तरह से मिली थी आजा दी हमें जहाँ खोयी थी जवानों ने अपनी जान इसके लिये भारत के क्रान्ति वीर सदैव हमारे ह्दय में जाग्रत रहे और पूर्ण रूप से भारत को सन् 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली ।
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