– कु. शिखा परमार
बी.ए. प्रथम वर्ष
सब कुछ यहाँ नया सा है,
मन में फिर भी आशा है।
जो शिष्य बड़े ही चंचल होते हैं,
वो व्यर्थ समय को खोते हैं।
‘गुरू’ ज्ञान हृदय में भरते हैं,
‘अज्ञान’ शि ष्य का हरते है।
सब कुछ यहाँ नया सा है,
मन में इच्छित अभिलाषा है।
गुरू जिन राहों से जोड गए,
पग चिन्ह जहाँ पर छोड़ गए।
उन राहों पर मैंने शिष्यों का
उज्जवल जीवन देखा है।
मंजिल की राह कठिन है,
लेकिन मन में जीवित आशा है।
मरूस्थल से भी जल को निकलते देखा है,
गुरू की कृपा से मैंने शिष्यों का जीवन बदलते देखा है।
संप्रति जहाँ खड़ी हूँ मैं गुरू ज्ञान का आशीष है,
गुरू की कृपा से सभी काम आसान हो जाते हैं,
सब कुछ यहाँ नया सा है, आगे बढ़ने की कोशिश ही तो आशा है।
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