– कु. नंदिनी वर्मा
बी .ए. तृतीय वर्ष
उगते सूरज की आभा है हिन्दी ।
नि र्मल जल की अविरल धारा है हिन्दी ।
हिन्दुस्तान के जन-जन की अभिलाषा है हिन्दी ।
जिसने काल को भी जीता वो काल-जयी भाषा है हिन्दी ।।
पुष्पों से आती सगुन्ध है हिन्दी ।
भाषाओं के आकाश में स्वच्छन्द है हिन्दी ।
कवियों की लेखनी की आशा है हिन्दी ।
जिसने काल को भी जीता वो कालजयी भाषा है हिन्दी ।।
हिमालय सी बड़ी विशाल है हिन्दी ।
पृथ्वी आकाश और पाताल है हिन्दी ।
संस्कृत से जन्मी स्वभाषा है हिन्दी ।
जिसने काल को भी जीता वो कालजयी भाषा है हिन्दी ।।
सूर के सागर का गागर है हिन्दी ।
भारत में वार्तालाप का सुमारग है हिन्दी ।
मस्तक की बिन्दी मातृभाषा है हिन्दी ।
जिसने काल को भी जीता वो कालजयी भाषा है हिन्दी ।।
कबीर की गुदड़ी का ज्ञान है हिन्दी ।
लेखकों का मान, सम्मान, अभिमान है हिन्दी ।
सर्वाधिक लोकप्रिय राष्ट्रभाषा है हिन्दी ।
जिसने काल को भी जीता वो कालजयी भाषा है हिन्दी ।।
तुलसी की राम चरितमानस रसखान के सबैये है हिन्दी ।
समूचे भारत को जोड़े समेटे है हिन्दी ।
जन-जन को जोड़ने वाला धागा है हिन्दी ।
जिसने काल को भी जीता वो कालजयी भाषा है हिन्दी ।।
सौभाग्यशाली हैं हम जो जन्म पाया आर्यावर्त में।
करेंगे सम्मान हिन्दी का ऐसा हम संकल्प लें।
क्योंकि कष्ट में है हमारी प्यारी भाषा है हिन्दी ।
जिसने काल को भी जीता वो कालजयी भाषा है हिन्दी ।।
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