– गार्गी त्यागी
बी.ए. द्वितीय वर्ष
पंथी चले जब राह पर, हर कोई उसको रोकेगा ।
पर माया के जंजाल में, वह पथ भी उसको टोकेगा ।।
तू आगे बढ़ तू आगे बढ़ तू आगे बढ़ मंजिल को पा ।
चाहे मिले सरिता, गहर चाहे केटक पड़ा ।।
एक दिन ऐसा भी आयेगा, कंटक भी सिर नंवायेगा ।
तेरी कामयाबी पर, ये जहाँ भी मुस्कुरायेगा ।।
जब आ मिले मंजिल तुझे, एक बार उससे पूछना ।
क्या बैर था मुझझे तेरा , जो पड़ा इतना ढूंढना ।।
पर लक्ष्य तेरा सिर्फ, मंजिल को ही पाना ना बने।
ये नाम तेरे बाद मे भी , गूंजे और ये जग सुने।।
बस लक्ष्य हो एक जीत का , और हार से ना हारना ।
रखना मान को ह्दय में तू, अभिमान को ना पालना ।।
जो बस गया हिय में अहम, फिर मन भी तुझको रोकेगा ।
इस माया के जंजाल में, वह पथ भी तुझको टोकेगा ।।
****