मेरे पापा

– संध्या भारद्वाज
पुत्री श्री राजकिशोर शर्मा
बी .ए. प्रथम वर्ष

वो थे सबके प्यारे,
बुराई के न थे उनमें एक भी अंगारे।
दया भावना उनके मन में,
रहती प्रतिपल जगमग तन में।
दुनिया ने उन्हें सम्मान दिया ,
भगवान ने उन्हें छीन लिया ।
यूँ तो दुनिया के सारे गम,
हँस कर सह लेती हूँ मैं।
पर जब भी आपकी याद आती है,
बस आइने में देख के रो लेती हूँ मैं।
जिंदगी के अंधेरे में वो जलती मशाल थे,थे
मुसीबत से बचाने को वो परिवार की ढाल थे।
कहाँ जी पाये थे वो जिंदगी अपने हिसाब से,
कंकड़ उनकी राहों में बिखरे बेहिसाब थे।

pratibha

combined e-magazine for session 2019-20, 2020-21, 2021-22 published by Mata Bhagwati Devi Rajkiya Mahila Mahavidyalay

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