– कु. प्रियंका
बी .ए. प्रथम वर्ष
रोज सूरज के साथ जागती है, मेरी आशा पर
आशा कभी कम ना होती है।
हर वक्त साँसों में सपनों की साँस लेती रहती है।
कभी -कभी कम हो ती है, तो कभी टूटती है,
पर आशा मेरी कभी खत्म ना हो ती है।
माना काच के जैसी नाजुक है,
पर आशाएँ बढ़ती रहती है।
फूलों के जैसी खिलती हैं मेरी आशा
और टहनियों की तरह टूटती है मेरी आशा ,
पर आशा कभी खत्म ना हो ती ।
दीपक के जैसे जलती है मेरी आशा
और हवा के साथ बुझती है मेरी आशा ,
पर आशा कभी खत्म ना हो ती ।
ढलता सूरज शाम को है,
पर आशा मेरी कभी अस्त ना हो ती है
यह ना जाने कैसी मेरी आशा है।
जो हर वक्त बढ़ती रहती है।
रोज सूरज के साथ जागती है मेरी आशा ।
संभल के चलना
रास्ते की पहचान नहीं है, तू जरा संभल के चलना
मुसाफिर तू अकेला नहीं , यह जान के चलना ।।
दुनिया में दिखावे बहुत मिलेंगे पर,
अपनी शरीयत का ख्याल रखना ।।
संगति और विसंगति से मत कभी रहना ,
क्योंकि, चन्दन तुझे हर हाल में है बनना ।।
ना मोम बनना ना पत्थर बनना बस एक
ऐसा इन्सा न बनना ना मोम सा पिघलना ना पत्थर जैसा बनना ।।
ढलते हुए सूरज को देखकर अंधेरे से मत घबराना ,
चाँद की रोशनी में खुद से अकेले बतलाना ।।
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