– कु. कृष्णा
बी .ए. प्रथम वर्ष
आज लिखने का मन न था
पर लेखनी अपने आप उठ गई
जो मंजर इन आँखों ने देखा
कागज पर एक तस्वीर उतर गयी
आखिर कब तक होती रहेगी
औरतों की दुर्दशा मेरी खामोशी
ऐसे हजारों सवाल कर गमी
अगर सवाल आये तो उत्तर भी होगा
पुरुषवादी सोच का नारा होगा
यकीं मानिये ये तभी होगा
जब नारी को नारी का साथ मिलेगा
स्वाभिमानी बनाना होगा
तभी तो आत्मसम्मान मिलेगा
कभी लक्ष्मी , कभी निर्भया, कभी अंकिता बनती है
रोज नये-नये तराजू में वो तुलती है
लाचार हुई तस्वीर देश की नारी है
फिर क्यों इंसाफ की भीख मांगती दिखती है
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